तीन हजार वर्ग किलोमीटर में स्वछंद विचरण कर सकेंगे मेहमान , पढ़ें कैसा बना है अरावली की पहाड़ियों में अफ़्रीकी चीतों का घरोंदा

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Dev Shrimali
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तीन हजार वर्ग किलोमीटर में स्वछंद विचरण कर सकेंगे मेहमान  , पढ़ें कैसा बना है  अरावली की पहाड़ियों में अफ़्रीकी चीतों का घरोंदा

देव श्रीमाली, GWALIOR.  मध्यप्रदेश और राजस्थान की सीमा पर स्थित श्योपुर जिला इन दिनों कूनो नेशनल पार्क को लेकर राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में हैं। देश के प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी  17 सितंबर को अपने जन्मदिन के अवसर पर अफ्रीकी चीतों का कूनो नेशनल पार्क में प्रतिस्थापन करेंगे। इन चीतों के लिए घर यानी इनके अनुकूल हेबिटेट तैयार करने का काम कई वर्षों से वन्य विशेषज्ञ कर रहे थे। आज "द सूत्र" अपने पाठकों के लिए इस अभ्यारण्य  की न केवल एक झलक दिखा रहा है बल्कि यह भी बता रहा है कि आखिर कैसे इसकी रचना हो सकी.





अरावली की पहाड़ियों में बना है चीतों का घरौंदा 





अरावली पर्वत श्रृंखला की सुरम्य पहाड़ियों  से घिरा कूनो नेशनल पार्क अपनी प्राकृतिक मनोहारी छंटा बिखेरते हुए नये मेहमानों के स्वागत के लिए पूरी तरह से तैयार है। प्रधानमंत्री  जब 17 सितंबर को नामीबिया से लाये गये चीतों की शिफ्टिंग  करेंगे, तब यह पल देश के लिए न केवल गौरवशाली होगा, बल्कि हमारे लिए एक एतिहासिक दिन भी। भारत से विलुप्त हुए चीतों का इस धरती पर 70 साल बाद फिर से आगमन, हमारे खोये हुए अतीत के भी वापस लौटने का सुखद पल होगा। उनकी बसाहट के लिए घरोंदा कूनो नदी के तट पर बनाया गया है। प्राकृतिक संपदाओं से भरपूर कूनो नेशनल पार्क के आगोश में बहने वाली कूनो नदी इसे न केवल ओर भी अधिक खूबसूरत बना देती है, बल्कि इसके सपाट और चौड़े तट पर खिली हुई धूप में अठखेलियां करते मगरमच्छ यहां आने वाले लोगों को रोमांचित कर देते है। 





इस नेशनल  पार्क में हैं 174 पक्षियों की प्रजातियां 





कूनो नेशनल पार्क में विभिन्न प्रकार के 174 पक्षियों की प्रजातियां मौजूद है, वहीं  सैकड़ों  प्रजातियां वन्य जीवों की है। पक्षियों की 12 प्रजाति तो दुलर्भ श्रेणी में मानी गई हैं। इस क्षेत्र में अनेक देशी और विदेशी पक्षी पर्यटन पर भी आते हैं और अनेक फिर यहीं अपना स्थायी घरोंदा बना लेते हैं क्योंकि यहाँ उनके स्वछंद विचरण के लिए बहुत ही अनुकूल माहौल मौजूद है। यह अंचल न केवल प्राकृतिक वन सम्पदा बल्कि जड़ी - बूटियों आदि से भी आच्छादित है। 





आखिरी बार कब दिखा था चीता 





चीता को  भारत में लुप्त हुए सत्तर साल बीत गए हैं।  भारत में आखिरी चीता 1950 में छत्तीसगढ़ में देखा गया था। इसके बाद यह कहीं नहीं दिखा। जब चीता लूट हो रहा था तो सरकार ने चीता दिखाने वाले को पांच लाख रुपये का इनाम घोषित किया था लेकिन वह कहीं नजर नहीं आया। इसके बाद सरकार ने बाहर से चीता लाने की योजना बनाई और इसी के तहत कूनो में ये चीते आ रहे हैं। 





ऐसे चीतों के लिए चुना गया यह क्षेत्र 





वर्ष 1952 में भारत में एशियाई चीतों के विलुप्त होने के बाद से भारत में चीतों को फिर से लाकर  स्थापित करने की योजना चल रही थी। इसी उद्देश्य के लिए सिंतबर 2009 में राजस्थान के गजनेर में चीता विशेषज्ञों की एक बैठक आयोजित की गई, जिसमें चीता संरक्षण कोष के डॉ लोरी मार्कर, स्टीफन जेओ ब्रायन एवं अन्य चीता विशेषज्ञों  ने दक्षिण अफ्रीकी चीता को भारत लाने सिफारिश की थी। पर्यावरण और वन मंत्रालय भारत सरकार, नई दिल्ली के निर्देश पर वर्ष 2010 में भारतीय वन्य जीव संस्थान (वाईल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट) ने भारत में चीता पुनर्स्थापना के लिए संभावित क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया, जिसमें 10 स्थलों के सर्वेक्षण में मध्यप्रदेश के नौरादेही अभ्यारण, कूनो पालपुर अभ्यारण एवं राजस्थान के शाहगढ़ को उपयुक्त पाया गया.  इन तीनों में से भी कूनो अभ्यारण्य जो वर्तमान में कूनो राष्ट्रीय उद्यान है, सर्वाधिक उपयुक्त पाया गया।  भारत में चीतों को बसाने के लिए कूनो नेशनल पार्क में निर्धारित प्रोटोकॉल और गाइडलाइन के अनुसार कार्य होगा।





तीन हजार वर्ग किलोमीटर में घूम सकेंगे चीते 





परियोजना के एकीकृत प्रबंधन में कूनो के राष्ट्रीय उद्यान के 750 वर्ग किलोमीटर में लगभग दो दर्जन चीतों के रहवास के लिए यावस्था  है। इसके अतिरिक्त करीब 3 हजार वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र दो जिलों श्योपुर और शिवपुरी में चीतों के स्वंच्छद वितरण के लिए उपयुक्त हैं। प्रधानमंत्री श् मोदी दो बाड़ों में चीते विमुक्त करेंगे। पहले बाड़े में  नर चीते छोड़े जाएंगे। दूसरे बाड़े में मादा चीता को छोड़ा जाएगा। वन विभाग के अधिकारियों के दल ने नामीबिया की चीता प्रबंधन तकनीक का प्रशिक्षण प्राप्त किया है। 





टीकाकरण हुआ पूरा 





कूनो राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र से लगे हुए गाँव में पशुओं के टीकाकरण का कार्य पूरा किया जा चुका है। क्षेत्र के समस्त गाँव में जागरूकता शिविर लगाए गए हैं तथा कूनो से लगे आसपास के ग्रामों के 457 लोगों को चीता मित्र बनाया गया है। यहाँ चीतों के रहवास के लिए अनुकूल परिस्थितियों का विकास किया गया है। पानी की व्यवस्था के साथ आवश्यक सिविल कार्य भी पूरे किए गए हैं। कूनो में वन्य-प्राणियों का घनत्व बढ़ाने के लिए नरसिंहगढ़ से चीतल लाकर छोड़े गए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार क्षेत्र में शिकार का घनत्व चीतों के लिए पर्याप्त है। नर चीते दो या दो से अधिक के समूह में साथ रहते हैं। सबसे पहले चीतों को दो-तीन सप्ताह के लिए छोटे-छोटे पृथक बाड़ों में रखा जाएगा। एक माह के बाद इन्हें बड़े बाड़ों में स्थानांतरित किया जाएगा। विशेषज्ञों द्वारा बड़े बाडों में चीतों के अनुकूलन संबंधी आंकलन के बाद पहले नर चीतों को और उसके पश्चात मादा चीतों को खुले जंगल में छोड़ा जाएगा। इस संबंध में आवश्यक प्रोटोकॉल के अनुसार कार्यवाही की जाएगी। 



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